तुंगनाथ (Tungnath) –The Lord of Peaks
“To travel is to take a journey into yourself”
उत्तराखंड भारत का 27 वां राज्य है. मंदिरों और तीर्थ स्थानों का केंद्र होने के कारण इसे " देवभूमि " भी कहा जाता है. उत्तराखंड अपनी प्राकृतिक सौंदर्यता के मिए पूरे भारत में प्रसिद्द है. भारतीय संस्कृति की २ प्रमुख नदियों गंगा और यमुना का उदगम स्थान भी उत्तराखंड में ही है. इन सभी खूबियों की वजह से पर्यटन की द्रिष्टी से उत्तराखंड अव्वल स्थान पर काबिज है. हमारी ज्मभूमम होने की वजह से यहाँ घूमना और समय बिताना हमें खासा पसंद है. भारत के कुछ मनमोहक ट्रेक्स उत्तराखंड में ही हैं. हमारी घूमने
फिरने की चाहत हमें एक बार फिर उत्तराखंड की वादियों में ले आयी. और इस बार का लक्ष्य था " तुंगनाथ और चंद्रशिला पीक".
इस बार हम बाइकिंग के साथ साथ ट्रैकिंग का भी लुफ्त उठाने वाले थे.
पहला दिन:- 2 -जून-2016-दिल्ली से ऋषिकेश ( 242 Kms):-
ऑफिस में काम करने का आज कुछ ज्यादा ही excitement था . आज से हमारा तुंगनाथ tour जो शुरू होनाथा . हम चार लोग नवीन (बाबा जी ), राजेश, अमित (गुप्ता जी) और मैं, इस सफर पर निकलने वाले थे. पहले की यात्राओं के अनुभव की वजह से tour itinerary और जरूरत का सामान जुटाने में हमको कोई खासी तकलीफ नहीं हुई. यात्रा शुरू करने के एक दिन पहले ही हमने अपने बैग्स तैयार कर लिए थे. सबको अपने अपने ऑफिस से ही निकलना था इसीलिए सारा सामान एक दिन पहले ही bikes पर लोड कर दिया था. (Bungee ropes से बैग्स को bullets की पिछली सीट पे बाँध दिया था )
ऑफिस का काम जल्दी निपटाकर हम अपने अपने ऑफिस से निकल गए और शाम के 5 बजे सब मोहननगर क्रासिंग पर इकट्ठे हुए. यहाँ से हम सब को एक साथ ऋषिकेश के लीये रवाना होना था. कुछ ही पलों में हम NH -58 पर थे. NH -58, दिल्ली को मेरठ के रास्ते उत्तराखंड के गढ़वाल रीजन से जोड़ता है. रात का dinner हमने Meerut - Mujjaffar nagar रोड पर खुले ढाबे में कर लिया था.
ऋषिकेश के रास्ते के बीच में रूड़की नाम का शहर है. यहाँ पर बस अड्डे के पास की दुकानो में चाय का आनंद लेना ना भूलें. बस अड्डा होने की वजह से और IIT रुड़की का कैंपस नजदीक होने की वजह से ये दुकाने पूरी रात खुली होती हैं. एक लजीज कप चाय सारी थकान उतार देती है. ऋषिकेश में बाबा ने THDC का gusest house बुक करवा लिया था. थके हारे हम लोग अपने अपने कमरों में फटाफट सोने चले गए.
ऑफिस का काम जल्दी निपटाकर हम अपने अपने ऑफिस से निकल गए और शाम के 5 बजे सब मोहननगर क्रासिंग पर इकट्ठे हुए. यहाँ से हम सब को एक साथ ऋषिकेश के लीये रवाना होना था. कुछ ही पलों में हम NH -58 पर थे. NH -58, दिल्ली को मेरठ के रास्ते उत्तराखंड के गढ़वाल रीजन से जोड़ता है. रात का dinner हमने Meerut - Mujjaffar nagar रोड पर खुले ढाबे में कर लिया था.
ऋषिकेश के रास्ते के बीच में रूड़की नाम का शहर है. यहाँ पर बस अड्डे के पास की दुकानो में चाय का आनंद लेना ना भूलें. बस अड्डा होने की वजह से और IIT रुड़की का कैंपस नजदीक होने की वजह से ये दुकाने पूरी रात खुली होती हैं. एक लजीज कप चाय सारी थकान उतार देती है. ऋषिकेश में बाबा ने THDC का gusest house बुक करवा लिया था. थके हारे हम लोग अपने अपने कमरों में फटाफट सोने चले गए.
दूसरा दिन:- 3 - जून-2016- ऋषिकेश से श्रीनगर ( 113 Kms):-
अगली सुबह 6 बजे उठकर हम लोग अगले सफर के लिए तैयार हुए. ना्ता THDC की कैंटीन में किया गया. सब्जी, पराठा, ऑमलेट और एक गिलास दूध ने शरीर को फिर से एनर्जी दे दी. नाश्ता करने के बाद हम लोग ऋषिकेश को अलविदा कहते हुए चोपता के मिए रवाना हो गए.
पहला स्टॉप था देवप्रयाग, जो की ऋषिकेश से 74 फकिोमीटर् की दूरी पर है. हम लोग सुबह ११ बजे देवप्रयाग पहुँच गए. देवप्रयाग से चलते हुए लगभग 4 किलोमीटर आगे हम लोग रिफ्रेशमेंट लेने के लिए रुके. बाबा जी के सर पे शायद लू लगी थी या फिर वो भांग खाये हुए थे के उन्होंने जोर से मेरी बुलेट का accelerator खींचा और wire टूट गया. पहाड़ी इलाको में बाइक मैकेनिक आसानी से नहीं मिलते, और फिर ये तो बुलेट थी. वापस देवप्रयाग शहर बाइक को धकेल कर ले जाया गया. तेज ढलान ने साथ दिया और बाइक आसानी से शहर पहुँच गयी. लेकिन नौसिखिया मैकेनिक की लाख कोशिशों के बावजूद वो ब्रेकडाउन ठीक नहीं कर पाया. 3
घंटो की जद्दोजहत के बाद मैकेनिक ने हाथ खड़े कर दिए और हमको श्रीनगर जाने की सलाह दे दी. श्रीनगर रुद्रप्रयाग से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर बसा एक बड़ा शहर है.
पहला स्टॉप था देवप्रयाग, जो की ऋषिकेश से 74 फकिोमीटर् की दूरी पर है. हम लोग सुबह ११ बजे देवप्रयाग पहुँच गए. देवप्रयाग से चलते हुए लगभग 4 किलोमीटर आगे हम लोग रिफ्रेशमेंट लेने के लिए रुके. बाबा जी के सर पे शायद लू लगी थी या फिर वो भांग खाये हुए थे के उन्होंने जोर से मेरी बुलेट का accelerator खींचा और wire टूट गया. पहाड़ी इलाको में बाइक मैकेनिक आसानी से नहीं मिलते, और फिर ये तो बुलेट थी. वापस देवप्रयाग शहर बाइक को धकेल कर ले जाया गया. तेज ढलान ने साथ दिया और बाइक आसानी से शहर पहुँच गयी. लेकिन नौसिखिया मैकेनिक की लाख कोशिशों के बावजूद वो ब्रेकडाउन ठीक नहीं कर पाया. 3
घंटो की जद्दोजहत के बाद मैकेनिक ने हाथ खड़े कर दिए और हमको श्रीनगर जाने की सलाह दे दी. श्रीनगर रुद्रप्रयाग से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर बसा एक बड़ा शहर है.
किसी लोडिंग गाडी का इंतज़ार न करते हुए हमने मेरी बुलेट को बाबा जी की बुलेट से एक मोटी जूट की रस्सी से बांधकर खींचना शुरू कर दिया. काफी जद्दोजहत के बाद लगभग 3 घंटे में 35 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद हम श्रीनगर में थे. यहाँ पर बुलेट का मैकेनिक आसानी से मिल गया. बाइक ठीक होने में 3 घंटे और लग गए और रात श्रीनगर में ही हो गयी. इसीमिए श्रीनगर से लगभग 4 किलोमीटर आगे श्रीकोट के एक होटल में हमने आज की रात गुजारी.
अलकनंदा नदी पर बने चौरास ब्रिज पर हमने ठंडी ठंडी हवाओं का आनंद उठाया और उसके बाद डिनर करने के लिए श्रीनगर मार्किट के पास गोल चौक में होटल वाटिका में लजीज खाने का लुफ्त उठाया.
अलकनंदा नदी पर बने चौरास ब्रिज पर हमने ठंडी ठंडी हवाओं का आनंद उठाया और उसके बाद डिनर करने के लिए श्रीनगर मार्किट के पास गोल चौक में होटल वाटिका में लजीज खाने का लुफ्त उठाया.
तीसरा दिन:- 4 - जून-2016- श्रीनगर से चोपता और तुंगनाथ ( 65 Kms + 4 kms trekking):-
मॉर्निंग 9 बजे हम नाश्ते की टेबल पर थे. लजीज आलू पराठे और और दूध पीने के बाद हम चोपता की ओर निकल गए. श्रीकोट से चोपता की दूरी तक़रीबन 65 किलोमीटर है और यहाँ से ट्रैकिंग शुरू होती है. रास्ते में रुद्रप्रयाग से थोड़ा आगे जाकर अलकनंदा के किनारे फोटोग्राफी करके और लोकल बच्चो के साथ क्रिकेट का आनंद लेने के बाद हम लोग चोपता की ओर निकल पड़े. दोपहर लगभग 03:00 बजे हम चोपता पहुँच चुके थे.
चोपता से तुंगनाथ का सफर अब ट्रैकिंग से होना था. लगभग 4 किलोमीटर का ये सफर, 2-3 घंटो में पूरा होना था. ये ट्रेक moderate level का है और पत्थरो से रास्ता तैयार किया गया है, जगह जगह विश्राम करने के लिए बेंच लगाई गयी हैं और बिना किसी परेशानी के ट्रेक पूरा किया जा सकता है. फिर भी अगर किसी को ट्रैकिंग करने में परेशानी महसूस होती है तो किराये पे घोड़ो की सुविधा भी उपलब्ध है.
ट्रैकिंग शुरू करने से पहले हमने चोपता में एक होटल पर अपनी बाइक्स खड़ी कर दी और सारा सामान भी वही छोड़ दिया. छोटे छोटे बैग पैक्स में केवल एक रात के रुकने का जरूरी सामान ही हम लोग साथ ले के जा रहे थे. थोड़ा refreshment लेने के बाद हम लोगों ने लगभग ४ बजे ट्रैकिंग शुरू की और शाम 06:45 पे हम लोग तुंगनाथ में थे. जून के मौसम में भी हम लोगों ने जैकेट्स पहने हुए थे और ट्रैकिंग के दौरान हुई बारिश की वजह से ठंड और भी बढ़ गयी थी. Raincoats और waterproof bags हमारे पास थे इसीलिए बारिश में ट्रैकिंग में हमे कोई खासी परेशानी नहीं हुई.
तुंगनाथ पहुंचकर हमने सबसे पहले हमने मंदिर में भोलेनाथ के दर्शन किये. यहाँ ठंड इतनी थी के नंगे पैर चलना दुश्वार हो रहा था. कुछ सालो पहले तुंगनाथ में रुकने की कोई भी व्यवस्था नहीं थी और पर्यटक चोपता में ही रुकते थे . लेकिन tourism के बढ़ने से और अच्छी कमाई के चलते लोकल लोगो ने अपने रहने वाले घरो को होटल में तब्दील कर दिया है. तुंगनाथ में बिजली की कोई व्यवस्था नहीं है और सोलर लालटेन का इस्तेमाल होता है. रहने और खाने में आप को कोई खासी परेशानी नहीं होगी.
हमारे प्लान में यूँ तो रात कैंप साइट में गुजारना था जिसके लिए पहले से ही राजेश ने एक लोकल गाइड की मदद से बंदोबस्त कर दिया था. लेकिन कंपकंपा देने वाली ठंड और बारिश के चलते हम लोगो ने एक होटल में 2 रूम्स लेकर रात गुजारी. पास के एक छोटे से होटल में खाना खाने के बाद हम लोग अपने होटल में वापस आ गए और ना जाने कब आँख लग गयी.
ट्रैकिंग शुरू करने से पहले हमने चोपता में एक होटल पर अपनी बाइक्स खड़ी कर दी और सारा सामान भी वही छोड़ दिया. छोटे छोटे बैग पैक्स में केवल एक रात के रुकने का जरूरी सामान ही हम लोग साथ ले के जा रहे थे. थोड़ा refreshment लेने के बाद हम लोगों ने लगभग ४ बजे ट्रैकिंग शुरू की और शाम 06:45 पे हम लोग तुंगनाथ में थे. जून के मौसम में भी हम लोगों ने जैकेट्स पहने हुए थे और ट्रैकिंग के दौरान हुई बारिश की वजह से ठंड और भी बढ़ गयी थी. Raincoats और waterproof bags हमारे पास थे इसीलिए बारिश में ट्रैकिंग में हमे कोई खासी परेशानी नहीं हुई.
तुंगनाथ पहुंचकर हमने सबसे पहले हमने मंदिर में भोलेनाथ के दर्शन किये. यहाँ ठंड इतनी थी के नंगे पैर चलना दुश्वार हो रहा था. कुछ सालो पहले तुंगनाथ में रुकने की कोई भी व्यवस्था नहीं थी और पर्यटक चोपता में ही रुकते थे . लेकिन tourism के बढ़ने से और अच्छी कमाई के चलते लोकल लोगो ने अपने रहने वाले घरो को होटल में तब्दील कर दिया है. तुंगनाथ में बिजली की कोई व्यवस्था नहीं है और सोलर लालटेन का इस्तेमाल होता है. रहने और खाने में आप को कोई खासी परेशानी नहीं होगी.
हमारे प्लान में यूँ तो रात कैंप साइट में गुजारना था जिसके लिए पहले से ही राजेश ने एक लोकल गाइड की मदद से बंदोबस्त कर दिया था. लेकिन कंपकंपा देने वाली ठंड और बारिश के चलते हम लोगो ने एक होटल में 2 रूम्स लेकर रात गुजारी. पास के एक छोटे से होटल में खाना खाने के बाद हम लोग अपने होटल में वापस आ गए और ना जाने कब आँख लग गयी.
चौथा दिन :- 5-जून-2016- तुंगनाथ से चंद्रशिला से दिल्ली ( 454 Kms (including 8 kms trekking):-
आज हमारी यात्रा का आखरी दिन था और इस आखरी दिन बहुत कुछ करना और देखना था. सुबह 4 बजे हम लोग उठ गए थे क्यूंकि सबसे पहले हम लोगो को चंद्रशिला पीक जाकर sunrise देखना था. तुंगनाथ से चंद्रशिला पीक की दूरी लगभग 2 किलोमीटर है लेकिन ये 2 किलोमीटर तय करने में 45 मिनट से 1 घंटे का समय लग जाता है. रास्ता काफी चढ़ाई वाला है और हर 15 मिनट में आराम करने की जरूरत महसूस होती है. चंद्रशिला पीक लगभग 13000 ft की ऊंचाई पर है. सुबह 04:45 पे हम लोग पीक पर पहुँच गए.
नंदादेवी पर्वत के पीछे से उगते हुए सूरज का नज़ारा एक कभी ना भुला पाने वाला एक अनोखा अनुभव है. उगते हुए सूरज के साथ साथ ठंड भी कम होने लगी. उन सुकून भरे कुछ पलों को अपनी यादों और कैमरों में कैद कर हम लोग वापस तुंगनाथ की ओर रवाना हो गए . नीचे जाते हुए आपको केवल 15 मिनट का ही
समय लगेगा. ऊपर से दिखने वाली हरी भरी पहाड़ियों का नजारा भी अद्भुत ही था.
नंदादेवी पर्वत के पीछे से उगते हुए सूरज का नज़ारा एक कभी ना भुला पाने वाला एक अनोखा अनुभव है. उगते हुए सूरज के साथ साथ ठंड भी कम होने लगी. उन सुकून भरे कुछ पलों को अपनी यादों और कैमरों में कैद कर हम लोग वापस तुंगनाथ की ओर रवाना हो गए . नीचे जाते हुए आपको केवल 15 मिनट का ही
समय लगेगा. ऊपर से दिखने वाली हरी भरी पहाड़ियों का नजारा भी अद्भुत ही था.
Pic: Sunrise view at Chandrashila Peak Pic: Green Descend from Chandrashila to Tungnath
तुंगनाथ पहुंचकर हमने अपना सामान उठाया और होटल से निकल गए. पास वाले होटल में हमने मैगी खायी
और फिर चोपता की ओर रवाना हो गए. सुबह के 08:30 बजे हम चोपता में थे. चाय पीने के बाद अपने बैग्स पैक करके हम लोग 09:15 पे श्रीनगर के लिए रवाना हो गए. दोपहर 12:30 बजे हम लोग श्रीनगर में थे. दिल्ली तक का काफी लम्बा सफर तय करना बाकी था. इसीलिए लंच करने के बाद हम लोग बिना आराम किये आगे बढ़ गए.
शाम के 04:30 बजे हम लोग ऋषिकेश पहुँच गए. यहाँ फिर से बारिश ने हमारा स्वागत किया. शाम के 6
बजे हम चिल्ला नेशनल पार्क (हरिद्वार) में थे. यहाँ पे हम लोग थोड़ा सा आराम और रिफ्रेशमेंट के लिए रुके. हमने बंद मक्खन, मैगी और चाय का आनंद लिया और आगे बढ़ गए. रात के 8 बजे हम लोग रुड़की
पहुँच गए. यहाँ पहुंचने के बाद बारिश रुकी. रुड़की में हम लोग डिनर करने के लिए रुके.
ये हमारी यात्रा का अंतिम पड़ाव था. तसल्ली से डिनर करके और बाइक्स में पेट्रोल भरवाने के बाद हम लोग
लगभग १० बजे दिल्ली के लिए रवाना हो गए. रात के 3 बजे हम लोग दिल्ली में थे. और इस तरह हमारी यात्रा
समाप्त हुई.
केवल 4 दिनों का ये सफर यादगार रहा. बहुत सी मस्ती के साथ साथ थोड़ी सी परेशानियां भी झेली. इस सफर ने हमको जीवन की एक सीख दी के जीवन में सब कुछ आपके सोचे हुए प्लान के मुताबिक नहीं होता और जब ऐसा हो तो घबराये नही और परेशानी को पार करने की भरपूर कोशिश करें, क्यूंकि उसके बाद आप और भी मजबूत शक्शियत बनकर उभरेंगे.
और फिर चोपता की ओर रवाना हो गए. सुबह के 08:30 बजे हम चोपता में थे. चाय पीने के बाद अपने बैग्स पैक करके हम लोग 09:15 पे श्रीनगर के लिए रवाना हो गए. दोपहर 12:30 बजे हम लोग श्रीनगर में थे. दिल्ली तक का काफी लम्बा सफर तय करना बाकी था. इसीलिए लंच करने के बाद हम लोग बिना आराम किये आगे बढ़ गए.
शाम के 04:30 बजे हम लोग ऋषिकेश पहुँच गए. यहाँ फिर से बारिश ने हमारा स्वागत किया. शाम के 6
बजे हम चिल्ला नेशनल पार्क (हरिद्वार) में थे. यहाँ पे हम लोग थोड़ा सा आराम और रिफ्रेशमेंट के लिए रुके. हमने बंद मक्खन, मैगी और चाय का आनंद लिया और आगे बढ़ गए. रात के 8 बजे हम लोग रुड़की
पहुँच गए. यहाँ पहुंचने के बाद बारिश रुकी. रुड़की में हम लोग डिनर करने के लिए रुके.
ये हमारी यात्रा का अंतिम पड़ाव था. तसल्ली से डिनर करके और बाइक्स में पेट्रोल भरवाने के बाद हम लोग
लगभग १० बजे दिल्ली के लिए रवाना हो गए. रात के 3 बजे हम लोग दिल्ली में थे. और इस तरह हमारी यात्रा
समाप्त हुई.
केवल 4 दिनों का ये सफर यादगार रहा. बहुत सी मस्ती के साथ साथ थोड़ी सी परेशानियां भी झेली. इस सफर ने हमको जीवन की एक सीख दी के जीवन में सब कुछ आपके सोचे हुए प्लान के मुताबिक नहीं होता और जब ऐसा हो तो घबराये नही और परेशानी को पार करने की भरपूर कोशिश करें, क्यूंकि उसके बाद आप और भी मजबूत शक्शियत बनकर उभरेंगे.
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